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अयोध्या का इतिहास

मंदिर का स्थल भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव का विषय रहा है, क्योंकि यह बाबरी मस्जिद का पूर्व स्थान है, जिसे १५२८ और १५२९ के बीच बनाया गया था । १९४९ में मस्जिद में राम और सीता की मूर्तियों को रखा गया था, इससे पहले कि १९९२ में इस पर हमला किया गया और इसे ध्वस्त कर दिया गया । २०१९ में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को देने का फैसला सुनाया , जबकि मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या के धन्नीपुर में पास की जमीन दी गई । अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की एक रिपोर्ट को सबूत के रूप में संदर्भित किया, जिसमें ध्वस्त बाबरी मस्जिद के नीचे एक संरचना की उपस्थिति का सुझाव दिया गया था, जो गैर- इस्लामिक पाया गया था ।
5 अगस्त 2020 को, राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के लिए भूमि पूजन ( अनुवाद:  ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह ) भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था । वर्तमान में निर्माणाधीन मंदिर परिसर की देखरेख श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा की जा रही है । २२ जनवरी २०२४ को, मोदी ने इस आयोजन के अनुष्ठानों के मुख्य यजमान ( अनुवाद:  मुख्य संरक्षक ) के रूप में कार्य किया और मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की। प्राण  प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा किया गया था।

मंदिर निर्माण के साथ-साथ प्राचीन अयोध्या शहर को वैश्विक धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन स्थल में बदलने के लिए "एक नया हवाई अड्डा, पुनर्निर्मित रेलवे स्टेशन और टाउनशिप विकास को शामिल करते हुए" 10 बिलियन डॉलर की योजना बनाई गई है। मंदिर ने दान के कथित दुरुपयोग, इसके प्रमुख कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने और भारतीय जनता पार्टी द्वारा मंदिर के राजनीतिकरण के कारण कई विवादों को भी आकर्षित किया है।

अयोध्या, उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शहर है, जोकि हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इसे हिन्दू धर्मग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और इसे सात पवित्र नगरों (सप्तपुरी) में गिना जाता है। इसका इतिहास हजारों वर्षों पुराना है और यह शहर भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। रामायण के अनुसार, अयोध्या इक्ष्वाकु वंश की राजधानी थी, जहाँ राजा दशरथ ने शासन किया था। राजा दशरथ के चार पुत्रों में सबसे प्रमुख भगवान राम थे, जिन्हें विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। भगवान राम का जन्म, उनके वनवास, रावण के साथ युद्ध और अयोध्या में उनकी विजयी वापसी की कथा हिन्दू धर्म की प्रमुख कथाओं में से एक है। अयोध्या का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, महाभारत और पुराणों जैसे कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं। सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल में, अयोध्या एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र भी था। यहाँ के कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों में वास्तुकला और मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना देखने को मिलता है। अनेक धार्मिक त्योहारों और आयोजनों के कारण अयोध्या सदियों से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। अयोध्या की महत्ता केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि इसके ऐतिहासिक महत्व में भी निहित है। यह शहर सदियों से हिन्दू धार्मिकता और संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है और लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।

प्राचीन इतिहास

अयोध्या का प्राचीन इतिहास भारत के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहरों में से एक के रूप में उल्लेखनीय है। यह शहर सरयू नदी के किनारे स्थित है और इसे हिन्दू धर्म के पवित्र सप्तपुरियों में गिना जाता है। अयोध्या का सबसे पहला उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। रामायण के अनुसार, यह इक्ष्वाकु वंश की राजधानी थी, जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था। राजा दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है, और उनकी जन्मस्थली के कारण अयोध्या को "राम जन्मभूमि" के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल में, अयोध्या एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र था, जहाँ अनेक मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण हुआ। यहाँ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी वर्णित है, जो इसे भारतीय इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं।

मध्यकालीन इतिहास

8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच, अयोध्या विभिन्न राजपूत और स्थानीय राजवंशों के अधीन रही। इन शासकों ने भी यहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखा। 12वीं शताब्दी में, दिल्ली सल्तनत के विस्तार के साथ ही अयोध्या मुस्लिम शासकों के अधीन आ गई। 1528 में, मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर यहाँ बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ, जिससे अयोध्या का धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य बदल गया।
मुगल काल के दौरान भी अयोध्या का धार्मिक महत्व बना रहा और यहाँ हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग साथ-साथ रहते थे। अयोध्या के इस मिश्रित धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास ने इसे भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण शहर बना दिया, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है।

आधुनिक इतिहास

अयोध्या का आधुनिक इतिहास विवादों और सांप्रदायिक संघर्षों से भरा रहा है। 1949 में बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियों की स्थापना के बाद, हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। 1980 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन ने जोर पकड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, जिससे देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया, लेकिन यह समाधान संतोषजनक नहीं था। अंततः नवंबर 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण की अनुमति दी और मुस्लिम समुदाय को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक भूमि प्रदान की। इस निर्णय के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, जिससे शहर एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है, जो धार्मिक सद्भाव और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर